विधवाओं के विरूद्ध हिंसा एवं शोषण के लिए उत्तरदायी कारणों का समाजशास्त्रीय विश्लेषण

Vol-1 | Issue-12 | December 2016 | Published Online: 05 December 2016    PDF ( 83 KB )
Author(s)
Dr. Sudha Kumari 1

1Working Teacher Subject of (Home Science) +2 Govt Teacher in Higher Secondary School at Noora Jila Parishad, Patna

Abstract

नारी के लिए वैधव्य सबसे भयानक शब्द है। उसका सबसे बड़ा सौभाग्य सुहागिन बनना है। हिन्दुओं की उच्च जातियों में विधवा के पुनर्विवाह की परम्परा नहीं थी। विधवा से बड़े संयमी और तपस्वी जीवन की आशा की जाती थी। इस पर भी उसे अनष्टिकारी माना जाता था। उससे यह भी आशा की जाती थी कि वह यौन सम्बन्धी सभी बातों से विमुख रहेगी, जब परिवार के नजदीकी रिश्तेदार और समाज के भूखे भेड़िये उसकी अस्मत लूटने की चेष्टा करते हैं। यदि जाल में फँस गई तो सारा दोष उसी का है पुरूष तो उस लांछन से छूट ही जाता है। हिन्दू समाज ने शायद इसलिए सती प्रथा का आविष्कार कर लिया था कि विधवा अपने पति की लाश के साथ जिन्दा जला दी जाए ताकि न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसूरी। या फिर वृन्दावन और बनारस में विधवाओं को बाल मुंडवाकर रहने के लिए छोड़ दिया जाता था। आज भी ये हजारों की संख्या में सड़कों पर भिक्षा मांगती दिखाई देती है। अनेक वेश्यालयों तक भी विधवाएँ पहुंचाई जा चुकी है।

Keywords
वैधव्य, पुनर्विवाह, विमुख
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