बिरहोर जनजाति के सामाजिक जीवन के विभिन्न आयामों में आये परिवत्र्तन का समीक्षात्मक अध्ययन

Vol-1 | Issue-8 | August 2016 | Published Online: 28 August 2016    PDF ( 62 KB )
Author(s)
अरविन्द कुमार उपाध्याय 1; डाॅ0 सुधीर कुमार सिंह 2

1शोधार्थी विषय-इतिहास जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा

2शोध निर्देशक असिस्टेंट प्रोफेसर (सि0 स्केल) पी0जी0 डिपार्टमेंट आॅफ हिस्ट्री, जे0पी0 युनिवर्सिटी, छपरा।

Abstract

इस अनुसंधान से बिरहोर आदिवासी जो कि छोटानागपुर के घने जंगलों में स्थित है। उनके सामाजिक सांस्कृतिक पहलुओं का पता चलता है। यह जनजाति झारखंड, बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में फैली हुई है। यह अध्ययन वर्णात्मक प्रणाली पर आधारित है। जिसमें सहायक डेटा (गौण आकड़े) का प्रयोग किया गया है। बिरहोर जनजाति एक अल्पसंख्यक जनजाति है। इनकी जनसंख्या संथाल और मुंडा की अपेक्षा कम है तथा लगातार इनकी जनसंख्या घटते हीं जा रही है। जिससे बिरहोर जनजाति के विलुप्त होने की आशंकाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। अतः इस जनजाति को संभालने की आवश्यकता है। जिससे यह विलुप्त होने से बच सके। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि इस जनजाति को अपनी मूल जरुरतों को भी पूरा करने में भी काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। भोजन, वस्त्र, आवास, यातायात, स्कूल जैसी मूल जरुरतें भी इन्हें पूर्ण रुप से उपलब्ध नहीं हो पा रही है। स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ भी यह आदिवासी नहीं ले पा रहे हैं। वनों का संरक्षण भी इनके लिए एक गंभीर समस्या बन गयी है। बिचैलियों द्वारा लगातार वनों के दोहन से ये अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। अतः इन हालातों से बिरहोर जनजातियों को उबारने के लिए सरकार के साथ-साथ एन0जी0ओ0 शिक्षित वर्ग तथा मीडिया को भी आगे आना होगा, ताकि यह जनजाति भी अन्य वर्गों की तरह अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार कर सके।

Keywords
बिरहोर जनजाति, सामाजिक अध्ययन, आर्थिक स्थिति
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