वनाग्नि न्यूनीकरण एवं प्रबंधन – उत्तराखंड का केस अध्ययन
Vol-6 | Issue-11 | November-2021 | Published Online: 12 November 2021 PDF ( 603 KB ) | ||
DOI: https://doi.org/10.31305/rrijm.2021.v06.i11.008 | ||
Author(s) | ||
जयप्रकाश जायसवाल
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1शोधार्थी, भूगोल विभाग, राधे हरि राजकीय पोस्ट ग्रेजुएट काॅलेज, काशीपुर उद्यमसिंह नगर (उत्तराखंड) कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल |
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Abstract | ||
वर्तमान युग में वनाग्नि कोई नई अवधारणा नहीं हैं। परन्तु आजकल हरी वनस्पति के विशाल आवरण पर वनाग्नि का खतरा अधिक बढ़ गया हैं। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता जा रहा हैं। वनाग्नि की घटनाओं में बढ़ोत्तरी से पृथ्वी का भी तापमान भी बढ़ता जा रहा हैं। वन वनाग्नि के लिए ज्यादा सुभेद्य होते हैं क्योंकि सर्दियों में वर्षा बहुत कम मात्रा में होती हैं। भारत प्रत्येक वर्ष बहुत से भौगोलिक क्षेत्र में वनों की आग की घटनाओं को देखता है और यह हमारी जैव विविधता और वन्य जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा है। प्रत्येक वर्ष बहुत से वन्य जीव का जीवन जंगल की आग के कारण समाप्त हो जाता हैं। भारत में 105 राष्ट्रीय पार्क और 500 से अधिक अभ्यारण्य है। जिनमें वन्य जीव को इसके कारण खतरा विद्यमान है। उत्तराखंड एक हिमालयी राज्य है जिसमें जंगली जीवों एवं वनस्पतियों की एक बड़ी संख्या विद्यमान है। इन जंगली जानवरों और पौधे हमारे पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है। प्रत्येक वर्ष उत्तराखंड में बड़ी संख्या में वनाग्नि की घटनाएँ होती है। पास्थितिकीय रूप से संवेदनशील होने के नाते वे जंगल की आग राज्य के बड़े भौगोलिक क्षेत्र को नुकसान पहुँचाती हैं। उत्तराखंड में वन क्षेत्र के अन्तर्गत 45.32 भौगोलिक क्षेत्र है यह एकमात्र उत्तर भारतीय राज्य है। जिसका वन आवरण 33 प्रतिशत से अधिक है जो राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है। वनाग्नि की अध्किांश घटनाएँ मानवजनित होती है फिर भी और कारकों को खोजना बाकी हैं। इस प्रकार आग से वहाँ के निवासियों को अल्पकालिक लाभ हो सकता हैं लेकिन दीर्घकालिक प्रभाव उन्हें ज्ञात नहीं हैं। आम आदमी जो जंगलों के पास रहता है उसका हित उससे जुड़ा हुआ वह वनों में दिन-प्रतिदिन की आजीविका प्राप्त करता है। यदि इन वनाग्नि की घटनाओं का यदि प्रबंधन करना है तो सामुदायिक सहभागिता के द्वारा ही इन घटनाओं को कम किया जा सकता है। |
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Keywords | ||
वनाग्नि, जंगली, भारतीय, सहभागिता | ||
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