मधेपुरा के पर्याय बन चुके बी. पी. मंडल का जीवन और समाज में योगदान
Vol-1| Issue-3 | March 2016 | Published Online: 10 March 2016 PDF ( 403 KB ) | ||
Author(s) | ||
गौतम कृष्ण 1 | ||
1एमए (राजनीति विज्ञान), नेट जे आर एफ, पटना विश्व विद्यालय |
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Abstract | ||
आधुनिक राजनीतिक जगत में ऐसे विरले ही हुए हैं जो किसी स्थान विशेष के साथ इस कदर जुड़ गए कि वे उस स्थान की पहचान बन गए।मधेपुरा से लालू यादव और शरद यादव जैसे लोगों ने भी राजनीतिक पारी खेली, पर मधेपुरा का जो अभिन्न जुड़ाव बीपी मण्डल से है, वह बात अन्य राजनेताओं के बारे में नहीं हो सकती है। बात सिर्फ स्थानीय पहचान की ही नहीं है, बल्कि वे समकालीन और भावी राजनीति पर इस कदर भावी हो गए कि राजनीति कालखण्डों में विभाजित करने तक में कामयाब हो गए। ऐसे ही चंद लोगों में बिंदेश्वरी प्रसाद मण्डल का नाम लिया जा सकता है जिनके कार्यों ने समस्त भारत, उसमें भी ख़ासकर उत्तरी भारत की राजनीति को नई दशा और दिशा प्रदान की। वे चंद दिनों के लिए ही सही, अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। पर जैसा कि शोषितों के सबसे बड़े नेता अंबेडकर ने कहा था कि जिंदगी की लंबाई से ज्यादा मायने उसकी गुणवत्ता की होती है, बी.पी. मण्डल ने चंद दिनों की कार्यावधि में ही जाता दिया था कि भावी राजनीति कैसी होगी। बेशक एक मुख्यमंत्री के तौर पर लंबी पारी नहीं खेल सके, पर दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप में उनकी क्रांतिकारी सिफ़ारिशों ने भारतीय राजनीति में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया। जब बी.पी. मंडल बिहार के सीएम बने तब बरौनी रिफाइनरी मेंरिसाव के कारण गंगा में आग लग गई थी। विधानसभा में विनोदानंद झा ने कटाक्षकरते हुए कहा था कि “शूद्र मुख्यमंत्री होगा तो पानी में आग लगेगा ही।” इसके जवाब में मंडल ने कहा था कि “गंगा में आग तो तेल के रिसाव से लगी हैपरंतु एक पिछड़े वर्ग के बेटे के मुख्यमंत्री बनने से आपके दिल में जो आगलगी है, उसे हर कोई महसूस कर सकता है।” उनकी यह सपाटबयानी अवसरवादी राजनीति के युग में बेहद दुर्लभ हो गई है। प्रस्तुत आलेख में मधेपुरा के पर्याय बन चुके बी. पी. मंडल का जीवन और समाज में योगदान की विवेचना की गई है। |
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Keywords | ||
मधेपुरा, लालू यादव, शरद यादव, बिंदेश्वरी प्रसाद मण्डल,उत्तरी भारत की राजनीति, अविभाजित बिहार ,शूद्र मुख्यमंत्री, सपाटबयानी, अवसरवादी राजनीति, पिछड़े वर्गों की राजनीति। | ||
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